एक रोचक यात्रा
एक रोमांचपूर्ण यात्रा
वह एक अद्भुत यात्रा थी।पहाड़ की।आदिवासी ग्राम क्षेत्र की।सुनते थे,कुछ विचित्र स्थान है इस क्षेत्र में।नाम सबलगढ़।सुना था पहले बहुत घना जंगल था वहाँ।उस स्थान पर हिंसक जीव जंतु भी रहते थे।अभी भी हो सकते है।किसी समय यहाँ का सरदार या कहो तो छोटा मोटा राजा रहता था इस ऊंचाई पर।कुछ धन दौलत भी थी।जंगल मे रहना, आखेट करना,और जो उपलब्ध हो वही खाना।जरूरतें बहुत कम रही होंगी।जनता भी वैसी ही,जैसा राजा।जंगल से जो मिले लाओ,पकाओ खाओ।न कपड़ों की विशेष जरूरत,न अन्य खर्चे।बस पेट भरो।बस फुरसत हो तो अपनी बोली में गाओ, नाचो व अपने ढंग से रहो।अपने हाथों से झोपड़ी बनाओ।ऊपर बांस,लकड़ी व चारा डालकर छत बनाओ।छत के नीचे भी बल्लियां लगाकर सामान रखने की जगह बनाओ।आसपास महुआ बहुत।दारू बनाओ व उसीके तेल से दीपक जलाओ।रात में जानवर की आवाज आये तो मशाल जलाओ।बाहर से किसी का आना आसान न था।कोईं आता भी क्यों।हाँ कभी कभी ये लोग ही शहद,महुआ,
टेमरु नाम का फल,चारोली व लकड़ियाँ लेकर नीचे मीलों पैदल चलते चलते नगर में आकर सौदा करते व नमक,तेल आदि जरूरी सामान के साथ,ऊपर ले जाते।
हाँ तो ये सब तो बहुत पुरानी बातें हैं।चलिए,आपको अपनी यात्रा का बताती हूँ।आनंद,भय,रोमांच जो भी अनुभव किया।कभी भी याद करती हूँ तो झुरझुरी सी दौड़ जाती है शरीर में।
हम वनस्पति वाले अक्सर आसपास के जंगलों में कलेक्शन के लिए जाया करते थे।कुछ जड़ी बूटियों की जानकारी भी मिल जाती थी।इस स्थान पर एक बार पहले भी गए थे।तब भी शाम छः बजे से पहले लौट आये थे।आजकल इस पहाड़ पर बहुत कम परिवार रहते हैं।अधिकतर ने नीचे ही खेती की जमीन बना ली है।जो ऊपर रहते हैं,उन्होंने भी कुछ जंगल काटकर खेत बना लिए हैं।पिछली बार देखे थे।नीचे रहने वाले कुछ आदिवासी परिवारों से हमारी मित्रता भी हो गई थी।इस बार मेरी एक मित्र,जो अक्सर मेरे साथ जंगल जाती थी,उसने अपनी छोटी बहन को इस स्थान के बारे में बताया।वह बहुत लालायित थी इस स्थान को देखने।मेरी मित्र ने उसको बुलवा लिया था जंगल देखने।
तो हम सुबह जल्दी से खाना,पानी व अन्य कुछ सामान्य चीजें लेकर कार से रवाना हुए।उस ग्राम में पहुँचकर उन लोगों को ढूंढा जो हमारे साथ पहाड़ पर जा सकते थे।उनमें से एक व्यक्ति सुरेश जी तो दूर किसी अन्य गाँव मे चले गए थे।उन्हें बुलाने किसी को कार से भेजा।अन्य व्यक्ति गनपत कुछ समय बाद वहीं मिल गया।जब तक सुरेशजी आएं तब तक अन्य लोगों से हम जानकारी हासिल करते रहे।करीब डेढ़ घंटे बाद सुरेश जी आये।वे मिल गए यही बहुत बड़ी बात थी।हम लोग पानी आदि सामान लेकर चल पड़े यात्रा पर।रास्ते में पहाड़ी नदी मिली।उसमें उतर कर कुछ मस्ती की।कुछ खाया पीया व वापस ऊपर चलने लगे।कभी कभी फिसलने के डर से किसी का हाथ भी पकड़ना पड़ा।चलते चलते पेड़ पौधे भी देखते चलते।आने जाने वाले आदिवासियों से भी बातें करते।जानकारी लेते।लगभग 3 बजे ऊपर खंडहर हो रहे शिव मंदिर तक पहुंचे।मेरी एक चप्पल की पट्टी चलते चलते टूट गई।मैं मंदिर के पास ही बैठ गई।साथी लोग नीचे बह रहे नाले में उतर गए।थोड़ी देर बाद कोईं दुर्गंध महसूस हुई।एक ने नाक चढ़ाई।दूसरा इशारे में बोला,जल्दी वापस चलो खतरा है।किसी को किसी निशान का भी आभास हुआ।बिना आवाज किये,जल्दी जल्दी ऊपर आये।मैं कुछ पुछू तब तक तो मेरा बेग उठाया व इशारे से चुप रहने व वापस चलने को कहा।मैं कुछ समझू तब तक तेजी से आगे बढ़े।मैंने धीरे से कहा मेरी चप्पल टूटी है।ड्राइवर व सुरेश भाई को मेरे साथ छोड़कर आप लोग चलो।इतनी देर में आसमान में बादल भी छाने लगे।बूंदा बांदी शुरू हुई।हम दो ग्रुप्स में हो गए।अगले ग्रुप को कहा,नीचे जाकर गणपत के साथ टॉर्च भेजना।यह पहली बार हुआ था कि मैंने जल्दी जल्दी में जूते न पहनकर चप्पल पहने थे।टॉर्च लाना भी पहली बार भूली थी।खैर रास्ते में कुछ आदिवासी मिले,बोले जल्दी जाओ।कल ही नाले में एक बंदर को मारा है।सुनकर पैर काँपने लगे।अंधेरा बढ़ रहा था।डर रहे थे,पत्थरों पर से पाँव न फिसल जाए।एक तरफ पहाड़ अलग सांय सांय कर रहा है।रास्ते में छोटे बड़े जाने कितने पत्थर रास्ते को उबड़ खाबड़ बना रहे थे।चलने में दिक्कत थी।चप्पल को रुमाल से बांध रखा था।वो भी फिसलकर इधर उधर हो रहा था।हमें लग रहा था,अभी गणपत आएगा टॉर्च लेकर।लेकिन वह नहीं आया बड़ी मुश्किल से प्लेन रास्ते पर आए।तब तक गणपत भी आ गया था।
अब आगे सुनिए।गणपत को डांटा,इतनी देर क्यों लगाई।उसने जो कहा,सुनकर मैं वहीं बैठ गई।उसने बताया कि वे लोग भी रास्ता भटक गए थे।वो तो कुछ आदिवासी मिल गए।उन्होंने बताया कि तुम्हे वापस जाकर नाला पार करके नीचे उतरना है।उफ रोम रोम काँप गया मेरा तो।ये लोग भटक जाते,बारिश तेज हो जाती।कौन कैसे और किधर ढूँढने जाते।आँखों में आंसू आ गए।ईश्वर को धन्यवाद दिया कि बच गए।रात के लगभग 9 बजे गणपत अपने घर ले गया।उसकी माँ ने खड़ी तुवर चढ़ा दी थी चूल्हे पर।उनको अंदाज था कि हम लोग बहुत भूखे थे।
पहले बिना दूध की चाय पिलाई।हम लोग झोली जैसी चारपाइयों पर लेटे तो चाय पीने के लिए उठने की भी हिम्मत नहीं हुई।माँ ने कहा आराम करो तब तक मक्का की रोटी उतार देती हूं।मैंने बंद आंखों से ही हाँ में मुंडी हिला दी।कुछ देर बाद सामने गर्मागर्म मक्का की रोटी व तुवर की मसालेदार सब्जी आई तो बिना कुछ देर किए खाना शुरू किया।एक एक कौर पर बहुत स्वादिष्ट कहा व उनको दुआ देती रही।देर हो चुकी थी।जल्दी से,फिर आएंगे कहकर रवाना हुए।लेकिन गाड़ी में बैठकर भी उन लोगों से तब तक बातें होती रही,जब तक कि ड्राइवर ने गाड़ी आगे नहीं बढ़ाई।अपने शहर आते आते रात के बारह बज चुके थे।गाड़ी की आवाज व हमारी हलचल ने अड़ोसी पड़ोसियों को पूछने पर मजबूर कर दिया कि हम सब ठीक तो हैं।
तो मित्रों यह कहानी अभी खतम तो नहीं हुई पर कर रही हूँ।यदि अच्छी लगे तो बताइये व आगे के लिए इंतजार कीजिये।
डॉ.पुष्पा पटेल
खरगोन,मध्यप्रदेश
#lekhny को
#पर्यटन दिवस
# lekhny
Shalini Sharma
05-Oct-2021 03:05 PM
बेहतरीन पोस्ट
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Fiza Tanvi
04-Oct-2021 03:35 PM
Good
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Swati chourasia
01-Oct-2021 05:31 PM
Very nice 👌
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